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रंगों के पर्व होली का उत्‍तर प्रदेश के तीन शहर  मथुरा, काशी और कानपुर से गहरा नाता है।

कृष्‍ण की नगरी मथुरा और  महादेव की नगरी काशी की होली का इतिहास जहां हमारे हिंदू धर्म से जुड़ा है।

वहीं  कानपुर में सात दिनों तक का होली मनाने का पर्व भारत की आजादी के संघर्ष से जुड़ी कहानी से जुड़ा हुआ है।

होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है लेकिन कानपुर में सात दिनों तक होली मनाई जाती है और गंगा मेला के दिन समाप्त होता है।

कानपुर में सात दिनों तक होली मनाने का परंपरा आजादी  से पहले  की है। 

भारत में बिट्रिश शासन में एक बार होली के त्‍योहार पर पूरा कानपुर शहर के लोग होली का रंग खेल रहे थे तभी एक अंग्रेज पर होली का रंग पड़ गया।

गुस्‍से में आकर अंग्रेज अफसर ने शहर के कुछ लोगों को जेल में डलवा दिया। इस गिरफ्तारी से लोग नाराज होकर विरोध करने लगे।

गुस्‍से में आकर अंग्रेज अफसर ने शहर के कुछ लोगों को जेल में डलवा दिया। इस गिरफ्तारी से लोग नाराज होकर विरोध करने लगे।

अंग्रेजी हुक्‍मरानों को सबक सिखाने के लिए लगातार रंग खेलना शुरू किया और 7 दिन तक लगातार होली खेलते रहे।

रंग खेल कर विरोध करने के बाद अंग्रेज तंग आ गए और जिन 15 लोगों को अरेस्‍ट किया गया था उन्‍हें रिहा कर दिया।

कानपुर के सिविल लाइन्स की पास की जेल से लोग जब रिहा हुए तब वहीं जेल के पास में गंगा के किनारे सरशैय्या घाट पर लोगों ने रंग गुलाल के साथ होली खेली

 इसके बाद गंगा मइया में स्‍नान करके गले मिलकर होली का समापन किया। 

इस खुशी में शहर के लोगों ने अपनी जीत का जश्‍न मनाते हुए  हटिया चौक पर तिरंगा फहराया था

तभी से सात दिन होली मनाने की परंपरा कानपुर शहर में चली आ रही है।

कानपुर में अभी भी हर साल होली पर सिविल लाइन्स में सरशैय्या घाट पर गंगा मेला लगता है जहां लोग एकत्र होकर होली खेलते हैं। 

ढोल नगाड़ों के साथ रंग से खेलते हुए सरशैय्या घाट पर गंगा नदी में स्‍नान करते हैं।

अंग्रेजों के शासन से सात दिनों तक होली मनाने की परंपरा अभी तक चली आ रही है।